Bhaktamar Stotra Marathi | भक्तामर स्तोत्र मराठी

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भक्तामर स्तोत्र मराठी जैन धर्मातील सर्वात प्रभावशाली आणि चमत्कारी स्तोत्रांपैकी एक आहे. हे भगवान आदिनाथाची स्तुती करणारे एक अद्भुत काव्य रचन आहे, ज्याचे रचनाकार आचार्य मानतुंग हे त्यांच्या गहन ध्यान आणि भक्तीने हे स्तोत्र रचले होते. मराठी भाषेत रचलेले हे भक्तामर स्तोत्र फक्त एक प्रार्थना नाही, तर आत्मिक शुद्धता आणि आध्यात्मिक शक्तीचा स्रोत आहे. असे … Read more

Bhaktamar Stotra In Kannada | ಭಕ್ತಾಮರ ಸ್ತೋತ್ರ ಕನ್ನಡದಲ್ಲಿ

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ಭಕ್ತಾಮರ ಸ್ತೋತ್ರವು ಜೈನ್ ಧರ್ಮದ ಅತ್ಯಂತ ದಿವ್ಯ ಮತ್ತು ಶಕ್ತಿಶಾಲಿ ಸ್ತೋತ್ರವಾಗಿದೆ, ಇದನ್ನು ಆಚಾರ್ಯ ಮಾಣತಂಗರು ಭಗवानಾದಿನಾಥರ ಅನಂತ ಮಹಿಮೆಯನ್ನು ಮತ್ತು ಕೃಪೆಯನ್ನು ಗೂಡುಹಿಡಿದು ರಚಿಸಿದ್ದಾರೆ. ಈ ಸ್ತೋತ್ರದ 48 ಶ್ಲೋಕಗಳಲ್ಲಿ ಭಗವಾನದ ದಿವ್ಯ ಶಕ್ತಿ, ಕೃಪೆ ಮತ್ತು ಆಶೀರ್ವಾದವನ್ನು ಅದ್ಭುತವಾಗಿ ವರ್ಣಿಸಲಾಗಿದೆ. ಹೇಳಲಾಗುತ್ತದೆ कि ಭಕ್ತಾಮರ ಸ್ತೋತ್ರದಲ್ಲಿನ ಸಂಸ್ಕೃತದ ಅಪೂರ್ವ ಶಕ್ತಿ ಇಷ್ಟು ಪರಿಣಾಮಕಾರಿಯಾಗಿದೆ, ಇದು ನಿಯಮಿತವಾಗಿ ಮತ್ತು ಭಕ್ತಿಯಿಂದ ಪಠಿಸಿದರೆ ಜೀವನದಲ್ಲಿ ಆಧ್ಯಾತ್ಮಿಕ ಬದಲಾವಣೆಗಳು ಮತ್ತು ಶಾಂತಿ ಅನುಭವಿಸಬಹುದು. ಇದು ಕೇವಲ ಭಕ್ತಿಯ ಅತ್ಯುತ್ತಮ … Read more

Bhaktamar Stotra Gujarati | ભક્તામર સ્તોત્ર ગુજરાતી

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ભક્તામર સ્તોત્ર ગુજરાતીમાં વાંચવું માત્ર આધ્યાત્મિક લાભ જ આપતું નથી, પણ તે આપણા મન, આત્મા અને વિચારોને પણ શુદ્ધ કરે છે. આ સ્તોત્ર જૈન ધર્મના પહેલા તીર્થંકર ભગવાન આદિનાથની મહિમાનું ગાન કરે છે અને આચાર્ય માનતુંગ દ્વારા તેમના અટૂટ શ્રદ્ધાભાવથી રચાયેલું છે. જો તમે Bhaktamar Stotra Gujarati માં વાંચવા ઈચ્છો છો અને તેના ચમત્કારી પ્રભાવોને … Read more

Samayik Paath | सामायिक पाठ: जीवन में संतुलन और जागरूकता

Samayik Paath प्रेम भाव हो सब जीवों से, गुणीजनों में हर्ष प्रभो। करुणा स्रोत बहे दुखियों पर, दुर्जन में मध्यस्थ विभो॥1॥ यह अनन्त बल शील आत्मा, हो शरीर से भिन्न प्रभो। ज्यों होती तलवार म्यान से, वह अनन्त बल दो मुझको॥2॥ सुख दुख बैरी बन्धु वर्ग में, काँच कनक में समता हो। वन उपवन प्रासाद कुटी में नहीं खेद, नहिं ममता हो॥3॥ जिस सुन्दर तम पथ पर चलकर, जीते मोह मान मन्मथ। वह सुन्दर पथ ही प्रभु मेरा, बना रहे अनुशीलन पथ॥4॥ एकेन्द्रिय आदिक जीवों की यदि मैंने हिंसा की हो। शुद्ध हृदय से कहता हूँ वह, निष्फल हो दुष्कृत्य विभो॥5॥ मोक्षमार्ग प्रतिकूल प्रवर्तन जो कुछ किया कषायों से। विपथ गमन सब कालुष मेरे, मिट जावें सद्भावों से॥6॥ चतुर वैद्य विष विक्षत करता, त्यों प्रभु मैं भी आदि उपान्त। अपनी निन्दा आलोचन से करता हूँ पापों को शान्त॥7॥ सत्य अहिंसादिक व्रत में भी मैंने हृदय मलीन किया। व्रत विपरीत प्रवर्तन करके शीलाचरण विलीन किया॥8॥ कभी वासना की सरिता का, गहन सलिल मुझ पर छाया। पी पीकर विषयों की मदिरा मुझ में पागलपन आया॥9॥ मैंने छली और मायावी, हो असत्य आचरण किया। परनिन्दा गाली चुगली जो मुँह पर आया वमन किया॥10॥ निरभिमान उज्ज्वल मानस हो, सदा सत्य का ध्यान रहे। निर्मल जल की सरिता सदृश, हिय में निर्मल ज्ञान बहे॥11॥ मुनि चक्री शक्री के हिय में, जिस अनन्त का ध्यान रहे। गाते वेद पुराण जिसे वह, परम देव मम हृदय रहे॥12॥ दर्शन ज्ञान स्वभावी जिसने, सब विकार हों वमन किये। परम ध्यान गोचर परमातम, परम देव मम हृदय रहे॥13॥ जो भव दुख का विध्वंसक है, विश्व विलोकी जिसका ज्ञान। योगी जन के ध्यान गम्य वह, बसे हृदय में देव महान्॥14॥ मुक्ति मार्ग का दिग्दर्शक है, जनम मरण से परम अतीत। निष्कलंक त्रैलोक्य दर्शी वह देव रहे मम हृदय समीप॥15॥ निखिल विश्व के वशीकरण वे, राग रहे न द्वेष रहे। शुद्ध अतीन्द्रिय ज्ञान स्वभावी, परम देव मम हृदय रहे॥16॥ देख रहा जो निखिल विश्व को कर्म कलंक विहीन विचित्र। स्वच्छ विनिर्मल निर्विकार वह देव करें मम हृदय पवित्र॥17॥ कर्म कलंक अछूत न जिसको कभी छू सके दिव्य प्रकाश। मोह तिमिर को भेद चला जो परम शरण मुझको वह आप्त॥18॥ जिसकी दिव्य ज्योति के आगे, फीका पड़ता सूर्य प्रकाश। स्वयं ज्ञानमय स्व पर प्रकाशी, परम शरण मुझको वह आप्त॥19॥ जिसके ज्ञान रूप दर्पण में, स्पष्ट झलकते सभी पदार्थ। आदि अन्तसे रहित शान्तशिव, परम शरण मुझको वह आप्त॥20॥ जैसे अग्नि जलाती तरु को, तैसे नष्ट हुए स्वयमेव। भय विषाद चिन्ता नहीं जिनको, परम शरण मुझको वह देव॥21॥ तृण, चौकी, शिल, शैलशिखर नहीं, आत्म समाधि के आसन। संस्तर, पूजा, संघ-सम्मिलन, नहीं समाधि के साधन॥22॥ इष्ट वियोग अनिष्ट योग में, विश्व मनाता है मातम। हेय सभी हैं विषय वासना, उपादेय निर्मल आतम॥23॥ बाह्य जगत कुछ भी नहीं मेरा, और न बाह्य जगत का मैं। यह निश्चय कर छोड़ बाह्य को, मुक्ति हेतु नित स्वस्थ रमें॥24॥ अपनी निधि तो अपने में है, बाह्य वस्तु में व्यर्थ प्रयास। जग का सुख तो मृग तृष्णा है, झूठे हैं उसके पुरुषार्थ॥25॥ अक्षय है शाश्वत है आत्मा, निर्मल ज्ञान स्वभावी है। जो कुछ बाहर है, सब पर है, कर्माधीन विनाशी है॥26॥ तन से जिसका ऐक्य नहीं हो, सुत, तिय, मित्रों से कैसे। चर्म दूर होने पर तन से, रोम समूह रहे कैसे॥27॥ महा कष्ट पाता जो करता, पर पदार्थ, जड़-देह संयोग। मोक्षमहल का पथ है सीधा, जड़-चेतन का पूर्ण वियोग॥28॥ जो संसार पतन के कारण, उन विकल्प जालों को छोड़। निर्विकल्प निद्र्वन्द्व आत्मा, फिर-फिर लीन उसी में हो॥29॥ स्वयं किये जो कर्म शुभाशुभ, फल निश्चय ही वे देते। करे आप, फल देय अन्य तो स्वयं किये निष्फल होते॥30॥ अपने कर्म सिवाय जीव को, कोई न फल देता कुछ भी। पर देता है यह विचार तज स्थिर हो, छोड़ प्रमादी बुद्धि॥31॥ निर्मल, सत्य, शिवं सुन्दर है, अमितगति वह देव महान। शाश्वत निज में अनुभव करते, पाते निर्मल पद निर्वाण॥32॥ दोहा इन बत्तीस पदों से जो कोई, परमातम को ध्याते हैं। साँची सामायिक को पाकर, भवोदधि तर जाते हैं॥

सामायिक पाठ हमारी सोच का वह अहम हिस्सा है। जहाँ हमारी तेज़ रफ्तार ज़िंदगी में हर कोई आगे बढ़ने की होड़ में लगा हुआ है, वहाँ ठहरकर खुद को समझना और सही दिशा में सोचना बेहद ज़रूरी हो जाता है। जब हम नियमित रूप से Samayik Paath का जाप करते हैं, तो यह हमारी सोच … Read more

Bhaktamar Stotra Mahima | भक्तामर स्तोत्र महिमा

Bhaktamar Stotra Mahima

भक्तामर स्तोत्र महिमा एक अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रभावशाली जैन स्तोत्र है, जिसका वर्णन भगवान आदिनाथ की महिमा और उनके प्रति भक्तों के गहरे सम्मान से जुड़ा हुआ है। इसकी महिमा विशेष रूप से इसके आध्यात्मिक और मानसिक लाभों के कारण अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। Bhaktamar Stotra Mahima का मुख्य उद्देश्य इसके श्लोकों के दिव्य … Read more

Bhaktamar Stotra Images | भक्तामर स्तोत्र इमेज

Bhaktamar stotra images का उपयोग कर अपने भक्तिमय जीवन को और भी ऊर्जावान बना सकते हैं। जो आपके लिए लाभकारी हो सकते हैं।

भक्तामर स्तोत्र इमेज भक्तामर स्तोत्र से आध्यात्मिक रूप से जुड़ने और समझने का एक बेहतरीन तरीका है। जब आप भक्तामर स्तोत्र की सुंदर और प्रेरणादायक इमेजेज के द्वारा इन श्लोकों का पाठ करते है तो, यह आपके मन को शांति और संतुलन दोनों प्रदान करता हैं। Bhaktamar Stotra Images में पाठ की महिमा और भक्ति … Read more

Bhaktamar Stotra Sanskrit PDF

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File name Bhaktamar Stotra Lyrics PDF Size 161 KB No. of pages 12 Type PDF Dharm Pal Jainमैं धर्म पाल जैन एक आध्यात्मिक साधक और जैन धर्म का अनुयायी हूँ। मेरी गहरी आस्था जैन धर्म की शिक्षाओं, भगवान महावीर के सिद्धांतों और भक्तामर स्तोत्र की दिव्य शक्ति में है।मेरी वेबसाइट पर भक्तामर स्तोत्र का संपूर्ण … Read more

Bhaktamar Stotra 48 | भक्तामर स्तोत्र 48: श्लोकों में छिपी एक दिव्य शक्ति

Bhaktamar Stotra 48 ॥ जिन-स्तुति-फल मंत्र ॥ स्तोत्र-स्रजं तव जिनेन्द्र गुणैर्निबद्धाम्, भक्त्या मया विविध-वर्ण-विचित्र-पुष्पाम्। धत्ते जनो य इह कण्ठ-गता-मजस्रं, तं मानतुंग-मवशा-समुपैति लक्ष्मी: ॥48॥

भक्तामर स्तोत्र 48 श्लोक इस स्तोत्र का अंतिम और एक अद्भुत धार्मिक श्लोक है, जो भगवान आदिनाथ की स्तुति में प्रस्तुत किया गया है। यह स्तोत्र न केवल जैन धर्म के अनुयायियों के लिए, बल्कि सभी आध्यात्मिक रूप से जागरूक व्यक्तियों के लिए एक अमूल्य धरोहर है। Bhaktamar Stotra 48 के श्लोक में आंतरिक शांति, … Read more

Bhaktamar Stotra Anuradha Paudwal l भक्तामर स्तोत्र अनुराधा पौडवाल की आवाज में

Bhaktamar Stotra Anuradha Paudwal

हाल ही में, मशहूर गायिका अनुराधा पौडवाल ने अपनी दिव्य आवाज में इस स्तोत्र का गायन किया है, जिससे इसकी महिमा और भी बढ़ गई है। भक्तामर स्तोत्र अनुराधा पौडवाल की मधुर आवाज में सुनना न केवल एक भक्ति अनुभव है, बल्कि यह आपके मन को भी गहरे आत्मिक शांति की ओर ले जाता है। … Read more

Bhaktamar Stotra PDF | भक्तामर स्तोत्र पीडीएफ

Bhaktamar Stotra PDF

भक्तामर स्तोत्र, जो भगवान आदिनाथ की स्तुति में रचा गया था, जैन धर्म के प्रमुख स्तोत्रों में से एक है। भक्तामर स्तोत्र पीडीएफ का उपयोग आप न केवल आध्यात्मिक उन्नति के लिए कर सकते हैं, बल्कि इसके जाप से जीवन में चमत्कारी परिवर्तन भी हो सकते हैं। इस Bhaktamar Stotra का पाठ मन को शांति, … Read more