Bhaktamar Stotra 45 | भक्तामर स्तोत्र 45 का गहरा अर्थ!

भक्तामर स्तोत्र 45 वां श्लोक विशेष रूप से रोगों के नाश, दीर्घायु और स्वास्थ्य लाभ के लिए अत्यंत प्रभावशाली श्लोक है। भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म के सबसे प्रभावशाली और चमत्कारी स्तोत्रों में से एक है, जिसे आचार्य मानतुंग ने रचा था और इसमें कुल 48 श्लोक शामिल हैं, जिनमे से Bhaktamar Stotra 45 सभी भयानक रोगो के नाशक के रूप में जाना जाता है।

जैन धर्म में इस श्लोक को आयुर्वेदिक चिकित्सा से भी जोड़ा जाता है, क्योंकि यह शरीर की ऊर्जा को संतुलित करने और सकारात्मक तरंगों को उत्पन्न करने में सहायक माना जाता है।

रोग-उन्मूलन मंत्र

उद्भूत-भीषण-जलोदर-भार-भुग्ना:,
शोच्यां दशा-मुपगताश्-च्युत-जीविताशा:॥
त्वत्पाद-पंकज-रजो-मृत-दिग्ध-देहा:,
मत्र्या भवन्ति मकर-ध्वज-तुल्यरूपा:॥45॥

भक्तामर स्तोत्र 45

रोग-उन्मूलन मंत्र

उद्भूत-भीषण-जलोदर-भार-भुग्ना:,
शोच्यां दशा-मुपगताश्-च्युत-जीविताशा:॥
त्वत्पाद-पंकज-रजो-मृत-दिग्ध-देहा:,
मत्र्या भवन्ति मकर-ध्वज-तुल्यरूपा:॥45॥

श्लोक का अर्थ

जो लोग भयंकर जलोदर रोग से पीड़ित होकर दुर्बल और आशाहीन हो चुके हैं, जिनका शरीर रोग के भार से झुक गया है और सौंदर्य मुरझा चुका है, वे भी यदि आपके चरण कमलों की रज का स्पर्श पाकर उस अमृतमयी कृपा से अभिसिंचित होते हैं, तो फिर से तेजस्वी और आकर्षक स्वरूप प्राप्त कर लेते हैं, मानो स्वयं कामदेव के समान दिव्य आभा से भर गए हों।

यह श्लोक न केवल जैन अनुयायियों बल्कि सभी आध्यात्मिक साधकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके साथ ही आप Bhaktamar stotra 48, Bhaktamar Stotra Mahima और Samayik Paath का भी जाप कर सकते है। यदि आप सभी 48 स्तोत्र का जाप करना चाहते है तो Bhaktamar stotra images के द्वारा आप कर सकते है।

Bhaktamar Stotra 45वें श्लोक के पाठ की सरल विधि

इस श्लोक का पाठ रोगों से मुक्ति, अच्छे स्वास्थ्य और मानसिक शांति के लिए किया जाता है। इसे सही विधि से करने की प्रक्रिया नीचे आपके लिए दी गई है:

  1. स्नान व तैयारी: सुबह ब्रह्ममुहूर्त (4 से 6 बजे) स्नान करके साफ कपड़े पहनें। शांत जगह चुनें।
  2. बैठने की दिशा: पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके पद्मासन या सुखासन में बैठें। रीढ़ सीधी रखें।
  3. पूजा: सामने भगवान आदिनाथ की प्रतिमा/चित्र रखें। दीपक, धूप और फूल अर्पित करें। “ॐ ऋषभदेवाय नमः” का कुछ बार जाप करें।
  4. पाठ विधि: अब भक्तामर स्तोत्र 45वें श्लोक को साफ और धीमे स्वर में बोलें। शुद्ध उच्चारण पर ध्यान दें। चाहे तो रुद्राक्ष/कमल गट्टे की माला से गिनती रखें।
  5. जल अभिषेक (गंभीर रोग में): तांबे के बर्तन में पानी लें। 45वें श्लोक का 108 बार जाप करके रोगी को यह जल पिलाएँ और थोड़ा छिड़कें।
  6. आहार व आचरण: सात्त्विक भोजन करें, गुस्सा और नकारात्मक सोच से बचें। पाठ के बाद कुछ देर मौन रहें।
  7. समापन: दीपक–धूप को सुरक्षित स्थान पर रखकर पूजा स्थान साफ करें।

नोट – श्रद्धा और विश्वास के साथ इस विधि का पालन करने से यह श्लोक शरीर के रोग दूर करने के साथ-साथ मन और आत्मा को भी मजबूत बनाता है।

45वें श्लोक के पाठ के लाभ

इस श्लोक का पाठ रोगों से मुक्ति पाने, मन को शांत करने और आत्मा को मजबूत बनाने के उद्देश्य से किया जाता है:

  • शारीरिक स्वास्थ्य: इस श्लोक के नियमित पाठ से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और थकान, सिरदर्द या शारीरिक कमजोरी जैसी समस्याएँ कम होती हैं। यह शरीर में ऊर्जा का संतुलन बनाए रखकर साधक को स्वस्थ और सक्रिय बनाता है।
  • रोगों से मुक्ति: शास्त्रों में वर्णित है कि भक्तामर स्तोत्र का यह श्लोक पुराने और गंभीर रोगों में भी लाभकारी होता है। जैसे जोड़ों का दर्द, त्वचा संबंधी रोग या सांस की परेशानी आदि को दूर करने में यह सहायक माना जाता है।
  • मानसिक शांति: यह श्लोक मन को शांत करता है और चिंता या तनाव को कम करने में मदद करता है। इसके पाठ से साधक को मानसिक संतुलन मिलता है और वह अधिक सकारात्मक सोचने लगता है।
  • आध्यात्मिक उन्नति: श्रद्धा से किया गया यह पाठ साधक की आस्था और विश्वास को मजबूत करता है। यह आत्मा को शुद्ध करता है और साधक को जीवन में आध्यात्मिक प्रगति की ओर ले जाता है।
  • आत्मविश्वास: जब साधक शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होता है, तो उसका आत्मविश्वास भी स्वाभाविक रूप से बढ़ता है। यह आत्मविश्वास व्यक्ति को जीवन के हर क्षेत्र में आगे बढ़ने की शक्ति देता है।
  • सकारात्मक ऊर्जा: 45वें श्लोक के पाठ से शरीर और मन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इसका प्रभाव साधक के वातावरण में भी दिखाई देता है, जिससे घर-परिवार में शांति और सुखद माहौल बनता है।
  • सफलता व सिद्धि: यह श्लोक केवल स्वास्थ्य ही नहीं, बल्कि जीवन में सफलता पाने में भी मददगार है। इसके नियमित पाठ से व्यक्तित्व निखरता है और साधक अपने लक्ष्य की ओर आसानी से बढ़ पाता है।

नियमित श्रद्धा और विश्वास से किया गया 45वें श्लोक का पाठ शरीर, मन और आत्मा—तीनों को लाभ पहुँचाता है और जीवन को सुख-शांति व सफलता की ओर ले जाता है।

FAQ

भक्तामर स्तोत्र क्या है?

यह एक दिव्य स्तोत्र है, जिसे आचार्य रत्नसेन ने भगवान आदिनाथ की स्तुति के लिए रचा। यह स्तोत्र 48 श्लोकों का समूह है, और इसमें भगवान के विभिन्न रूपों की महिमा का वर्णन किया गया है।

श्लोक का जाप कितनी बार करना चाहिए?

यह स्तोत्र अभी तक किन-किन भाषाओँ में उपलब्ध है ?

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